बाल मन में उठते कुछ कोमल सवाल
मैं भारत का एक नन्हा सा बालक हूँ और अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस करता हूँ | अभी कुछ दिनों पहले तक तो मैं गर्व का मतलब भी नहीं जानता था | बस यूँही एक दिन कार्टून चैनल बदलते वक्त न्यूज चैनल लग गया और कानों में ये बात पड़ी कि मौजूदा समय में संसार की कुल युवा शक्ति में अधिकतम हिस्सा भारत का है और पूरी दुनिया भविष्य का सुनहरा दौर लिखने की उम्मीद हमसे ही कर रही है |
अनायास ही छाती फूल गयी और समझ आया कि गर्व की अनुभूति क्या होती है | लेकिन साथ ही साथ एक जिम्मेदारी का भी एहसास हुआ | इस विश्व निर्माण के सपने को मैंने सभी दोस्तों के साथ साँझा किया और हम सभी एकजुट होकर पुरे संसार की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए मेहनत करने लगे | अब “मैं”… “हम” में बदल गया था, अपनी दिनचर्या का भी टाइम टेबल बन गया था |
अब सब काम समय से होते,
कोई न आना-कानी थी,
विश्व निर्माण में हमको,
अहम् भूमिका जो निभानी थी |
हम सभी एक नयी उर्जा के साथ अपने लक्ष्य की ओर तेज़ी से कदम दर कदम बढ़ते जा रहे थे परन्तु अचानक कुछ वजहों को लेकर हम इतने चिंतित हो गए हैं कि विश्व निर्माण में अपने सामर्थ्य को लेकर ही आशंकित हैं | बल्कि हम इतने भी आश्वस्त नहीं हैं कि विश्व निर्माण के उस सुनहरे दौर तक हम जीवित भी होंगे या नहीं |
नयी पीढ़ी का हर छोटे से छोटा बच्चा बाज़ार में मिलने वाले हवा के लिफाफे में बंद चटपटी चीज़ें, जंक फूड्स, कोल्ड ड्रिन्क्स और इन्हीं की तरह दीमक जैसे सैंकड़ों ब्रान्डेड और लोकल प्रोडक्ट्स को खाने की जिद करता है | सभी जानते हैं कि ये चीजें हमे तेज़ी से खोखला किये जा रही हैं, परन्तु फिर भी हम बच्चों की जिद के आगे माँ-बाप को नतमस्तक हो हमें ये दीमक प्रोडक्ट्स खिलाने ही पड़ते हैं | पर एक बात हमारी समझ से परे है कि यदि ये चीजें हमारे लिए इतनी ही घातक हैं तो बाज़ार में बिकती ही क्यूँ हैं ?
खैर, हम सभी मित्रों ने इन “दीमक प्रोडक्ट्स” को छोड़ने और आगे से सिर्फ पोषक भोजन जैसे साग-सब्जी, फल और अनाज आदि ही खाने का संकल्प लिया | पर एक दिन बाद ही हमें पता चला कि इन्हें उगाने के लिए भी कीट-नाशक, यूरिया और अधिक पैदावार लेने के लिए कई प्रकार की दवाईयां इस्तेमाल की जाती हैं, जो धीमे ज़हर का काम कर रही हैं | हमारी पीढ़ी के अधिकतर बच्चे चश्मा तो माँ के गर्भ से ही लेकर पैदा हो रहे हैं | अब हम सभी असमंजस की स्थिति में हैं कि क्या खाएं, क्योंकि हर खाने वाली चीज में हमें किसी न किसी प्रारूप में जहर दिखाई दे रहा है |
हम ये सोच कर और भी चिंतित हो उठते हैं कि युवा शक्ति के आधार पर भविष्य में विश्व निर्माण का सुनहरा युग लिखने के स्वप्न देखने वाला हमारा देश यदि सबसे अधिक बीमार युवाओं वाला बन गया तो क्या होगा ?
बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं, हम में से कई बहुत बड़े और महंगे प्राइवेट स्कूलों से, कुछ सरकारी स्कूलों से तो कुछ बाल मजदूरी से विश्व-निर्माता बनने की तैयारी कर रहे हैं |
चिंताग्रस्त तो हम पहले से ही हो चुके थे, उस पर रही सही कसर पिछले दिनों घटित एक घटना ने कर दी | जिसे देखकर हम बच्चों कि छाती ढीली पड़ गयी, जब पता चला कि पापा और दादु की उम्र के लोग भी हम बच्चों को चीखने चिल्लाने में हरा सकते हैं | दरअसल कई लोग मिलकर एक बड़े से हाल में आपस में लड़ते हुए जोर-जोर से चिल्ला रहे थे और तो और इसका सीधा प्रसारण भी किया जा रहा था TV पर | हम बच्चों को तो ऐसा मौका कभी नहीं दिया जाता….! हमें तो थोडा सा शोर मचाने पर ही मैम एक वार्निंग देकर क्लास से बाहर निकाल देती हैं पर उधर तो कोई मैम की बात ही नहीं सुन रहा था I पापा से पूछने पर पता चला कि ये हमारे “लोकतंत्र के मंदिर” का दृश्य था | बालक हैं……, ज्यादा कुछ तो समझ नहीं पाए परन्तु ये शायद हमारा भविष्य सुखद बनाने के लिए स्वच्छ दिलो-दिमाग से की जाने वाली कोई महत्वपूर्ण प्रक्रिया ही होगी….!!
हमने अपनी इन चिंताओं के बारे में अपने-अपने मम्मी-पापा से भी बात की, परन्तु वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए | समस्याएं तो और भी बहुत सी हैं जिन्हें शायद गिन पाना भी मुश्किल होगा | ये तो बस बाल मन में उठे वो शुरुवाती सवाल हैं जिनके उत्तर जानना हमारे लिए बहुत आवश्यक है | बालक हैं, नहीं जानते कि इनके जवाब कहाँ से मिलेंगे इसलिए बस जहाँ भी मौका मिलता है बाल मन में उठे इन सवालों को रख देते हैं |
सुना है कि छोटे पौधे को सीधा और स्वस्थ रखने के लिए सहारे और पानी की जरूरत होती है | जब तक वो पेड़ नहीं बन जाता उसकी देखभाल करना जरूरी है | तभी हम उसकी ठंडी छाँव और फलों का मज़ा चख सकते हैं | क्या हम बच्चे भी छोटे पौधों कि तरह नहीं हैं ?
एक बालक
“जो विश्व निर्माण में अपना योगदान देना चाहता है”
Wonderful Article. I loved the way of writing on this most serious issue.