यारों अब भी मैं ज़िन्दा हूँ…
आज जो थामा हाथ किसी का
मदद को उसकी बिना स्वार्थ के
तब जाकर एहसास हुआ ये
लहू रगों का जमा नहीं है
यारों अब भी मैं “ज़िन्दा” हूं….
सतिन्द्र कुमार ‘साहिल’
आज जो थामा हाथ किसी का
मदद को उसकी बिना स्वार्थ के
तब जाकर एहसास हुआ ये
लहू रगों का जमा नहीं है
यारों अब भी मैं “ज़िन्दा” हूं….
सतिन्द्र कुमार ‘साहिल’